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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : बसंत आया, पिया न आएघोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है<br> '''रचनाकार:''' [[मनोज भावुकसिराज फ़ैसल ख़ान]]</td>
</tr>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
बसंत आया, पिया न आए, पता नहीं क्यों जिया जलायेघोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी हैपलाश-सा तन दहक उठा रपट लिखाने मत जाना तुम ये धंधा सरकारी है, कौन विरह की आग बुझाये। हवा बसंती, फ़िज़ा की मस्ती, लहर की कश्ती, बेहोश बस्तीतुमको पत्थर मारेंगे सब रुसवा तुम हो जाओगेसभी की लोभी नज़र मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है मुझपे, सखी रे अब तो ख़ुदा बचाए। पराग महके, पलाश दहके, कोयलिया कुहुके, चुनरिया लहकेहिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैँपिया अनाड़ी, पिया बेदर्दी, जिया की बतिया समझ न पाएइस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है । नज़र मिले तो पता लगाऊं की तेरे मन का मिजाज़ क्या भारतवासी कुछ दिन से रूखी रोटी खाते हैँपानी पीकर जीते हैं मँहगी सब तरकारी है।मगर कभी तू इधर जीना है तो आए नज़र से मेरे नज़र मिलाये अभी झूठ भी लम्बी उदास रातें, कुतरबोलो घुमा-कुतर के जिया को काटेफिरा कर बात करोअसल में ‘भावुक’ खुशी तभी केवल सच्ची बातें करना बहुत बड़ी बीमारी है जो ज़िंदगी में बसंत आए।</pre>
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