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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=अनिल जनविजय]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय]]}}{{KKAnthologyLove}}{{KKCatKavita}}<poem>जब-जब झाँका, मैंने भीतरतेरे अंतस मेंमैंने पायाडूबी है तू प्रेम रस में
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~रश्मि रंगों से रंगा है मनतन में छाई है घोर अगनविकल कामना सुगंध रति की भीनीझिलमिल झलके वासना छवि झीनी कर न पाएमति को तू किसी तरह भी बस मेंडूबी है तू प्रेम रस में हृदय को सींचे प्रिय आलोक की छायामन को टीसे सजन मोह की मायानेह वेदनाविगलित तन दिगंबराहरसिंगार-सी झरे स्मृति अंबरा तू पाती हैसुख प्रसव का इस व्यथा अवश मेंडूबी है तू प्रेम रस में 1999</poem>
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