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कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभुए के परताप तै दाख न भावत ।।119।।
बहुरि धन्य धन्य जदुवंश - मनि, दीनन पै अनुकूल।धन्य सुदामा सहित तिय, कहिबरसहिं सुर फूल।।120।।  समाप्त
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