भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परों का जब कभी / गौतम राजरिशी

123 bytes added, 09:03, 27 फ़रवरी 2011
चिता की अग्नि ने बढ़ कर छुआ था आसमां को जब
धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला {त्रैमासिक शेष, जुलाई-सितम्बर 2009 / गर्भनाल 49 अंक}</poem>
235
edits