भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कड़ी है धूप राहों में ये सुनकर ही भला
गिरे खा ग़श, वो मंज़िल का इरादा क्या करे
 
{मासिक हंस, मार्च 2009}
</poem>
235
edits