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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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[[Category:नवगीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>
पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे
 
साखू की डाल पर उदासे मन
 
उन्मन का क्या होगा
 
पात-पात पर अंकित चुम्बन
 
चुम्बन का क्या होगा
 
मन-मन पर डाल दिए बन्धन
 
बन्धन का क्या होगा
 
पात झरे, गलियों-गलियों बिखरे
 कोयलें उदास मगर फिर-फिर वे गाएंगीगाएँगी
नए-नए चिन्हों से राहें भर जाएंगी
 
खुलने दो कलियों की ठिठुरी ये मुट्ठियाँ
 माथे पर नई-नई सुबहें मुस्काएंगी मुस्काएँगी
गगन-नयन फिर-फिर होंगे भरे
पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे
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