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औरत / जमील मज़हरी

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सीनः-ए-मिहर से<ref>सूर्य के सीने से</ref> थोड़ी-सी हरारत माँगी
रूह <ref>आत्मा</ref> फूलों की बनी, जिससे वह ख़ुशबू लेकर
दिल-ए-शाइर के अमानत थे जो आँसू लेकर
और तिरी ख़ाक के ज़र्रों से मुहब्बत का ख़मीर
दहर में <ref>संसार में</ref> मक़सदे-तख़लीक की <ref>सृष्टि के उद्देश्य के लिए</ref> हामिले <ref>साधन</ref> है तूजिसके आगोश में <ref>गोद में</ref> कुलज़म <ref>दरिया, नदी</ref> है, वह साहिल <ref>किनारा</ref> है तू
चढ़ के परवान तेरी गोद से इन्साँ निकला
मानि-ए-लफ़्ज़-ए-सकूँ राज-ए-मुहब्बत है तू
है ये मुजमल मुज्मल<ref>संक्षिप्त, सार रूप में</ref> तेरी तारीफ़ कि औरत है तू
</poem>
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