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{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
}}
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<Poem>
इसी शहर में
इन्हीं हवाओं में
सांस लेती हो तुम
इसी शहर के भीड़ भरे
जगमग रास्तों से
गुज़रता हूं मैं अकेला
तुम्हें याद करता ।
</poem>
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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
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<Poem>
इसी शहर में
इन्हीं हवाओं में
सांस लेती हो तुम
इसी शहर के भीड़ भरे
जगमग रास्तों से
गुज़रता हूं मैं अकेला
तुम्हें याद करता ।
</poem>