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सबकी नज़रें बचा के देख लिया
'फ़ैज़', तक़्मील-ए-ग़म <ref>दुख की पूर्ति</ref> भी हो न सकी
इश्क़ को आज़मा के देख लिया
जा के देखा, न जा के देख लिया
</poem>
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