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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}|संग्रह=विनयावली / तुलसीदास {{KKCatKavita}}* [[Category:लम्बी रचनाविनयावली / तुलसीदास / पद 161 से 170 तक / पृष्ठ 1]]{{KKPageNavigation|पीछे=* [[विनयावली() / तुलसीदास / पद 161 से 170 तक / पृष्ठ 162]]|आगे=* [[विनयावली() / तुलसीदास / पद 161 से 170 तक / पृष्ठ 183]]|सारणी=* [[विनयावली() / तुलसीदास }}<poem>'''/ पद 161 से 170 तक'''/ पृष्ठ 4]] (* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 161) श्री तो सों प्रभु जो पै कहूँ कोउ होतो। तो सहि निपट निरादर निसदिन, रटि लटि ऐसो घटि को तो। कृपा-सुधा-जलदान माँगियो कहौं से साँच निसोतो। स्वाति-सनेह-सलिल-सुख चाहत चित-चातक सेा पोतो। काल-करम-बस मन कुमनोरथ कबहुँ कबहुँ कुछ भो तो। ज्यों मुदमय बसि मीन बारि तजि उछरि भभरि लेत गोतो।। जितो दुराव दासतुलसी उर क्यों कहि आवत ओतो। तेरे राज राय दशरथ के, लयो बयो बिनु जोतो।। <170 तक /poem>पृष्ठ 5]]
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