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05:46, 17 मार्च 2011
ख्वैहौं न पठावनी कै ह्वैहौं न हँसाइ कै।9।
///// प्रभुरूख पाइ कै, बोलाइ बालक बालक धरनिहि, बंदि कै चरन चहूँ दिसि बैठे घेरि-घेरि। छोटो-सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजूको, धोइ पाय पीअत पुनीत बारि फेरि-फेरि।। तुलसी सराहैं ताको भागु, सानुराग सुर, बरषैं सुमन, जय-जय कहैं टेरि -टेरि।। बिबिध सनेह -सानी बानी असयानी सुनि, हँसैं राघौ जानकी-लखन तन हेरि-हेरि।10।
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