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Kavita Kosh से
नहीं दरिया तो हो सराब कोई
रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई
कौन सा ज़ख़्म किसने बख़्शा है
उसका रखे हिसाब कोई
फिर मैं सुन्ने सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई