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|रचनाकार=असद ज़ैदी
|संग्रह=कविता का जीवन / असद ज़ैदी
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एक दिन दाढ़ी बनवाते हुए
मैं उस्तरे के नीचे सो गया
कई बार ऎसा होता है
कि लोग हजामत बनवाते हुए
सो जाते हैं
उस्तरे, कंघे और क़ैंची के नीचे
जैसे पेड़ के नीचे
नाई नींद में भी घुस आया अपने किस्से का छोर संभाले
कहा-- अजी मैं कभी का हो गया होता बरबाद
भला हुआ ताऊ ने हाथ में उस्तरा दे कर
बना दिया जबरन मुझे नाई
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