भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
987 bytes added,
07:57, 21 मार्च 2011
( {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=तुलसीदास}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=पार्वती-मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 3|आगे=पार्वती-मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 5|सारणी=पार्वती-मंगल / तुलसीदास}}<poem>'''।।श्रीहरि।।''' '''( पार्वती-मंगल पृष्ठ 4)'''
मोरेहुँ मन अस आव मिलिहिं बरू बाउर।देव देखि भल समय मनोज बुलायउ।लखि नारद नारदी उमहि सुख भा उर।17। कहेउ करिअ सुर काजु साजु सजि आयउ।25।
सुनि सहमे परि पाइ कहत भए दंपतिं।बामदेउ सन कामु बाम होइ बरतेउ। गिरिजहि लगे हमार जिवनु सुख संपति।18। जग जय मद निदरेसि फरू पायसि फर तेउ।26।
नाथ कहिय सोइ जतन मिटइ जेहिं दूषनु।रति पति हीन मलीन बिलोकि बिसूरति। नीलकंठ मृदु सील कृपामय मूरति।27। दोष दलन मुनि कहेउ बाल बिधु भूषनु।19।आसुतोष परितोष कीन्ह बर दीन्हेउ। सिव उदास तजि बास अनत गम कीन्हेउ।28।
दोहा- अब ते रति तव नाथ कर होइहि नाम अनंगु। बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु।। अवसि होइ सिधि साहस फलइ सुसाधन।जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महि भारा। कोटि कलप तरू सरिस संभु अवराधन।20। कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा।।
तुम्हरें आश्रम अबहिं ईसु तप साधहिं। उमा नेह बस बिकल देह सुधि बुधि गई। कहिअ उमहि मनु लाइ जाइ अवराधहिं।।21 कलप बेलि बन बढ़त बिषम हिम जनु दई।29।
कहि उपाय दंपतिहि मुदित मुनिबर गए। समाचार सब सखिन्ह जाइ घर घर कहे। अति सनेहँ पितु सुनत मातु पितु परिजन दारून दुख दहे।30। जाइ देखि अति प्रेम उमहि सिखवत भए।22। उर लावहिं। बिलपहिं बाम बिधातहि देाष लगावहिं।31। जौ न होहिं मंगल मग सुर बिधि बाधक। तौ अभिमत फल पावहिं करि श्रमु साधक।32।
सजि समाज गिरिराज दीन्ह सबु गिरिजहि। साधक कलेस सुनाइ सब गौरिहि निहोरत धाम को। बदति जननि जगदीस जुबति जनि सिरजहिं। 23। को सुनइ काहि सोहाय घर चित चहत चंद्र ललामको। समुझाइ सबहि दृढ़ाइ मनु पितु मातु, आयसु पाइ कै। लागी करन पुनि अगमु तपु तुलसी कहै किमि गाइकै।4।
जननि जनक उपदेस महेसहि सेवहि ।अति आदर अनुराग भगति मनु भेवहि।24। '''(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 4)'''
भ्ेावहि भगति मन बचन करम अनन्य गति हरचरन की। गौरव सनेह सकेाच सेवा जाइ केहि बिधि बरन की।ं गुन रूप जोबन सींव संुदरि निरखि छोभ न हर हिएँ। ते धीर अछत बिकार हेतु जे रहत मनसिज बस किएँ।3।( इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 3)</poem>
Mover, Reupload, Uploader