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23 मार्च / पाश

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=पाश|संग्रह=}}[[Category:पंजाबी भाषा]]{{KKCatKavita}}<poem>उसकी शहादत के बाद बाकी बाक़ी लोग <br />किसी दृश्य की तरह बचे <br />ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झांकी झाँकी की <br />देश सारा बच रहा बाकी <br />बाक़ी उसके चले जाने के बाद <br />उसकी शहादत के बाद <br />अपने भीतर खुलती खिडकी में <br />लोगों की आवाजें आवाज़ें जम गयीं <br /> उसकी शहादत के बाद<br />देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने<br /> अपने चेहरे से आंसू आँसू नहीं , नाक पोंछी <br />गला साफ़ कर बोलने की<br /> बोलते ही जाने की मशक की <br /> उससे सम्बंधित सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद<br /> लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए<br />कपड़े की महक की तरह बिखर गया<br />  शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह<br />लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था.</poem>
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