भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<poem>
यह भी अजब तमाशा है ।
जिसको देखो प्यासा है ।
प्यार तुम्हारा क्या कहने
पानी-धुला बताशा है ।
फूलों और बारुदों की
अपनी-अपनी भाषा है ।
मुखिया मेरी बस्ती का
बना गोगियापाशा है ।
</poem>