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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=वृन्द}}[[नीति के Category:दोहे / वृन्द]] <br>
'''नीति के दोहे'''<br><br>
अपनी पहुँ विचार विचारिकै, करतब करिये दौर ।<br>
तेते पाँव पसारिये, जेती लाँबी सौर ॥ 2<br><br>
विद्या धन उद्यम बिना, कहो जू पावै कौन ।<br>
बिना डुलाये ना मिलै, ज्यौं पंखा की पौन ॥ 4<br><br>
मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान ।<br>
तनिक सीत जल सों मिटै, जैसे दूध उफान ॥ 7<br><br>
अति हठ मत कर हठ बढ़े, बात न करिहै कोय ।<br>
ज्यौं –ज्यौं भीजै कामरी, त्यौं-त्यौं भारी होय ॥ 9<br><br>