भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
:पस ए पर्दा किसी ने मेरे अरमानों की महफ़िल को :कुछ इस अंदाज़ से देखा कुछ ऐसे तौर से देखा:ग़ुबार ए आह से देकर जिला आइना ए दिल को :हर इक सूरत को मैंने ख़ूब देखा गौर से देखा
नज़र आई न वो सूरत मुझे जिसकी तमन्ना थी
बहुत ढूँढा किया गुलशन में वीराने में बस्ती में