भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ऐ असीरान ए मुहन, मुफ़लिस, ग़रीब ओ नातवाँ
ऐ ग़म ए अय्याम, ऐ फ़िक्र ए हुसूल ए रोज़गार!
ऐ खियाबान ए अमल, ऐ बाजू बाज़ू ए मसरूफ़ ए कार
ऐ ख़ुमार ए बादा ए दौलत में बेहोश ओ हवास
ऐ की कि तुम से ज़ररा ज़ररा ज़िन्दगी का है उदास !
बेनियाज़ ए मस्ती ओ जाम ओ सुबू कर दो मुझे
अपने कैफ़ ए मुस्तक़िल से इस तरह भर दो मुझे