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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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हँसता, हुलसता, झूमता आया है नया वर्ष फिर,
जीवन में खुशियाँ भरने को आया है नया वर्ष फिर।
हर घर के देहरी-द्वार पर जगमगाते दीप ऐसे,
जमीं पे उतर आए हों नभ के सभी सितारे जैसे,
चन्दा औ चाँदनी सी मचल रही यह रात फिर
जीवन में खुशियाँ भरने को आया है नया वर्ष फिर।
क्रिसमस ट्री बना है कल्पतरु खुशियों को है बिखेरता,
अमृत बरस रहा हो ज्यूँ पीकर के हर मन झूमता,
बच्चों को बाँटने खिलौने आते शान्ता-क्लाज फिर
जीवन में खुशियाँ भरने को आया है नया वर्ष फिर।
आशा की इक किरण से ही होता है चमत्कार यूँ,
पी लेता अँधकार को लघु दीप का प्रकाश ज्यूँ,
कभी नहीं उतरता यूँ जीने का यह खुमार फिर ,
जीवन में खुशियाँ भरने को आया है नया वर्ष फिर।
नगर-नगर,गली-गली दुल्हन सी है सजी हुई,
गले में बहियाँ डाल के कली-कली खिली हुई,
मधुप के मधु-पान से लजाई नवनवेली फिर,
जीवन में खुशियाँ भरने को आया है नया वर्ष फिर।
<poem>
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