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इस सुनहरी धूप होली में कुछ देर बैठा कीजिए आना जी आना चाहे जो रंग लिए आना |आज मेरे हाथ की भींगेगी देह मगर याद रहे ये चाय ताजा पीजिए मन को भी रंग से सजाना |
भोर में है आपका रूटीन
चिड़ियों की तरह ,
आप कब रुकतीं ,हमेशा
नयी घड़ियों की तरह ,
फूल हँसते हैं सुबह
कुछ आप भी हँस लीजिए |
दर्द पाँवों में उनींदी आँख वर्षों से बर्फ जमी प्रीति को मद्धम सी आंच पर उत्साह मन में उबालना ,सुबह बच्चों के लिए जाने क्यातुम बैठती -उठती किचन चुभता है आँखों में आना तो फूंककर निकालना ,कालबेल कहती बहनजी मैं नाचूँगी ढूध तो ले लीजिए राधा बनकर तू कान्हा बांसुरी बजाना |
मेज़ पर अखबार रखती
बीनती चावल ,
फिर चढ़ाती देवता पर
फूल अक्षत -जल ,
पल सुनहरे ,अलबमों के
बीच मत रख दीजिए |
,
हैं कहाँ तुमसे अलग
एक्वेरियम की मछलियाँ ,
अलग हैं रंगीन पंखों में
मगर ये तितलियाँ ,
इन्हीं से कुछ रंग ले
रंगीन तो हो लीजिए |
तुम सजाती घर आग लगी चलो तुमको सजाएँ जंगल में या पलाश दहके हैं ,धुले हाथों पर मेरे भी हरी मेहँदी लगाएं आंगन में कुछ गुलाब महके हैं ,चाँद सा मुख कब तक हम रखेंगे बांधकर खुशबू का है कहाँ ठिकाना | लाल हरे पीले रंगों भींगीचूनर को धूप में सुखायेंगे ,माथ पर सूरज उगा तुम मन के पंख खोल उड़ना हम मन के पंख को छुपायेंगे ,मन की हर बंधी गाँठ खोलना उस दिन तो लीजिए दरपन हो जाना | हारेंगे हम ही तुम जीतना टॉस मगर जोर से उछालना ,ओ मांझी धार बहुत तेज है मुझे और नाव को सम्हालना ,नाव से उतरना जब घाट पर हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना
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