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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 121 से 130 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 131]]|आगे=विनयावली() * [[पद 121 से 130 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 152]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 121 से 130 तक/ तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 131 121 से 140 130 तक''' (131) पावन प्रेम राम-चरन-कमल जनम लाहु परम। / तुलसीदास / पृष्ठ 4]] रामनाम लेत होत, सुलभ सकल धरम। जोग, मख, बिबेक, बिरत , बेद-बिदित करम। करिबै कहँ कटु कठोर, सुनत मधुर, नरम। तुलसी सुनि, जानि-बूझि, भूलहि जानि भरम। तेहि प्रभुको होहि, जाहि सब ही की सरम।।<* [[पद 121 से 130 तक /poem>तुलसीदास / पृष्ठ 5]]
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