भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'''पद संख्या 193 तथा 194'''
(193)
अजहुँ आपने रामके करतब समुझत हित होइ।
कहँ तू, कहँ कोसलधनी, तोको कहा कहत सब कोइ।1।
(194)
जे अनुराग न राम सनेही सों।
तौ लह्यों लाहु कहा नर-देही सो।