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Kavita Kosh से
ये पर्दे, यह खिड़की, ये गमले...
बदलता तो कुछ भी नहीं है ।
लेकिन क्या होता है
भेद सभी खोलेंगी ।
अनजाने होठों पर गीत आ जाता है ।
सुख क्या यही है ?