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( छंद 124, 125)
1(124) तौलौं लोभ लोलुप ललात लालची लबार, बार-बार लालचु धरनि-धन-धामको।  तबलौं बियोग -रोग -सोग , भोग जातनाको, जुग सम लागत जीवनु जाम-जामको।। तौलौं दुख-दारिद दहत अति नित तनु तुलसी है किंकरू बिमोह-कोह -कामको।  सब दुख आपने, निरापने सकल सुख, जौलौं जनु भयो न बजाइ राजा रामको।। (125)  तौलों मलीन ,हीन , दीन, सुख सपनें न, जहाँ-तहाँ दुखी जनु भाजनु कलेसको।  तौलौं उबेने पाय फिरत पेटौ खलाय ,बाय मुह सहत पराभौं देस-देसको।  तबलौं दयावनो दुसह दुख दारिदको, साथरीको सोइबो, ओढ़िबो झूने खेसको।।   जबलौं न भजैं जीहैं जानकी-जीवन रामु, राजनको राजा सो तौ साहेबु महेसको।।
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