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'''शंकर -स्तवन-12''' ( छंद 149, 150)
(149छंद 151, 152)
भस्म अंग, मर्दन अनंग, संतत असंग हर। सीस गंग, गिरिजा अर्धंग भुजंगबर।। (151)
मुंडमाल अरध अंग अंगना, बिधु बाल भालनामु जोगीसु, डमरू कपालु कर। जोगपति। बिबुधबृंद-नवककुमुद-चंदबिषम असन, सुखकंद सूलधर।दिगबसन, नाम बिस्वेसु बिस्वगति।।
कर कपाल, सिर माल ब्याल, बिष -भूति-बिभूषन। त्रिपुरारि त्रिलेाचननाम सुद्ध , दिग्बसनअबिरूद्ध, बिषभोजनअमर अनवद्य, भवभयहरन। कह तुलसिदासु सेवत सुलभ सिव सिव संकर सरन।।अदूषन।।
(150) बिकराल-भूत-बेताल-प्रिय भीम नाम, भवभयदमन। सब बिधि समर्थ, महिमा अकथ, तुलसिदास-संसय-समन।।
गरल -असन दिगबसन ब्यसन भंजन जनरंजन। कुंद-इंदु-कर्पूर-गौर सच्चिदानंदघन।। (152)
बिकटबेष, उर सेष , सीस सुरसरित सहज सुचि। भूतनाथ भय हरन भीम भय भवन भूमिधर।सिव अकाम अभिरामधाम नित रामनाम रूचि।ं भानुमंत भगवंत भूतिभूषन भुजंगबर।।
कंदर्प दुर्गम दमन उमारमन गुन भवन हर। भब्य भावबल्लभ भवेस भव-भार-बिभंजन।त्रिपुरारि! त्रिलोचन! त्रिगुनपर! त्रिपुरमथन! जय त्रिदसबर।। भूरिभोग भैरव कुजोगगंजन जनरंजन।।
भारती-बदन बिष-अदन सिव ससि-पतंग-पावक-नयन।
कह तुलसिदास किन भजसि मन भद्रसदन मर्दनमयन।।
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