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एक कहहिं कुँवरू किसोर कुलिस कठोर सिव धनु है महा।
किमि लेहिं बाल मराल मंदर नृपहिं अस काहुँ न कहा।7।
 
 
</poem>
[[जानकी -मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 9|अगला भाग >>]]
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