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{{KKRachna
|रचनाकार=नवनीत पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>सब जानते हैं
बड़े-बड़े शहरों में होते हैं
बड़े-बड़े मकान, बड़े-बड़े बाज़ार
बड़े मकानों में होते हैं
बड़े-बड़े कमरे
बड़ी-बड़ी सुविधाएं
बड़े बाज़ारों में होती है
बड़ी-बड़ी दूकानें, बड़ी-बड़ी चीज़ें
सब जानते हैं
बड़े मकानों में हैं
बड़े-बड़े लोग
बड़े-बड़े भोग
बड़ी-बड़ी बातें
बड़े बाज़ारों में हैं
बड़े-बड़े दूकानदार
बड़े-बड़े खरीददार
बड़े-बड़े सौदे
सब जानते हैं
बड़े मकानों, बड़े बाज़ारों
बड़े लोगों तक पहुंचने के लिए
होती है बड़ी-बड़ी सड़कें
बड़ी-बड़ी सड़कों तक पहुंचाती है
बड़ी-बड़ी गलियां
बड़ी-बड़ी गलियों में पहुंचने के लिए
होती है
छोटी-छोटी गलियां
सब जानते हैं
पर सब रह नहीं सकते
बड़े शहरों में
नहीं बना सकते बड़े मकान
नहीं जा सकते बड़े बाज़ारों में
नहीं पहुंच सकते
बड़ी सड़कों पर
बड़ी गलियों में
क्यूंकि
सब कहां ढूंढ पाते हैं
छोटी गलियां</poem>
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|रचनाकार=नवनीत पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>सब जानते हैं
बड़े-बड़े शहरों में होते हैं
बड़े-बड़े मकान, बड़े-बड़े बाज़ार
बड़े मकानों में होते हैं
बड़े-बड़े कमरे
बड़ी-बड़ी सुविधाएं
बड़े बाज़ारों में होती है
बड़ी-बड़ी दूकानें, बड़ी-बड़ी चीज़ें
सब जानते हैं
बड़े मकानों में हैं
बड़े-बड़े लोग
बड़े-बड़े भोग
बड़ी-बड़ी बातें
बड़े बाज़ारों में हैं
बड़े-बड़े दूकानदार
बड़े-बड़े खरीददार
बड़े-बड़े सौदे
सब जानते हैं
बड़े मकानों, बड़े बाज़ारों
बड़े लोगों तक पहुंचने के लिए
होती है बड़ी-बड़ी सड़कें
बड़ी-बड़ी सड़कों तक पहुंचाती है
बड़ी-बड़ी गलियां
बड़ी-बड़ी गलियों में पहुंचने के लिए
होती है
छोटी-छोटी गलियां
सब जानते हैं
पर सब रह नहीं सकते
बड़े शहरों में
नहीं बना सकते बड़े मकान
नहीं जा सकते बड़े बाज़ारों में
नहीं पहुंच सकते
बड़ी सड़कों पर
बड़ी गलियों में
क्यूंकि
सब कहां ढूंढ पाते हैं
छोटी गलियां</poem>