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आग / नवनीत पाण्डे

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<poem>आग से सब डरते हैं
सब को जला देती है आग
पर मुझे नहीं
मेरा तो घर है आग
बस अंगीकार करलो मुझे
मेरे घर आ जाओ
कभी नहीं जलोगे...</poem>
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