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Kavita Kosh से
फिर भी दिल को है उसी बेरहम की चाह बहुत
हमने माना कि खुशी ख़ुशी आपको होती इसमें हैं मगर आपकी खुशियों ख़ुशियों से हम तबाह बहुत
क्या हुआ अब जो इधर रुख रुख़ नहीं करता है कोई
चाह है तो मिलेगी बंदगी की राह बहुत
हाय! उस दूध की धोई नज़र का भोलापन!
यों तो उस दिल में बसी आपकी सूरत ही, गुलाब!
है मगर और भी फूलों से रस्मो-राह बहुत
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