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Kavita Kosh से
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नहीं हटाता हटता है पला पल भर लाज का परदा उन आँखों से
इशारों में ही दिल की बात हम कैसे भला समझें!
हम अपने को भी उनकी धड़कनों में देख लेते हैं
दिया जो आपने आकर कभी दिल में जलाया था
गुलाब ऐसे तो हर तितली से आँखें चार करते हैं
जो दिल की पंखडी पंखड़ी छू ले उसीको दिलरुबा समझें
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