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Kavita Kosh से
यों तो हमेशा मिलते रहे हम, दोनों तरफ़ थी एक-सी उलझन
उसने न रुख रुख़ से परदा हटाया, हमने न छोडा हाथ से दामन
कोई तो और भी आईने में था, साथ रहा हरदम जो हमारे जब भी उठायी आँख तो देखी हमने उसी की उसीकी प्यार की चितवन
उम्र की राह जो तै कर आये, आओ उसीसे लौट चलें अब
देखो, यहीं तुम हमको मिले थे, यह है जवानी, यह है लड़कपन
ताब थी क्या लहरों को डूबा की डुबा दें, नाव को डर तूफ़ान का कब था!
जिनके लिए हम मौत से जूझे, खुद वे किनारे ही हुए दुश्मन
रूप की हर चितवन में बसे हम, प्यार की हर धड़कन है हमारी
किसको गुलाब का रंग न भाया, किसमें नहीं काँटों की है कसकन!
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