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Kavita Kosh से
झुकके आँचल में उसने समेटा हमें, ज्यों ही तूफ़ान ने सर उभारा नहीं
उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे,दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी
जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं