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Kavita Kosh से
उसी बाँसुरी के सुरों पे हम, कोई धुन सजाके चले गये
वही पँखुरियाँ, वही बाँकपन, वही रंग-रूप की शोखियाँ शोख़ियाँ
वो गुलाब और ही था मगर, जिसे तुम खिलाके चले गये