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Kavita Kosh से
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें
हँसी तो होठों होँठों पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें
हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी
हटो भी , काली घटाओ! कि हम भी देख सकें
गये किधर वे उमंगो भरे बहार के दिन