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Kavita Kosh से
जिया है प्यार जहाँ ज़िन्दगी थी हार गयी
पिघलती आग-सी सीने के आर-पार गयी
लगा कि फिर से मुझे ज़िन्दगी पुकार गयी
घिरी घटा मेरी आँखों से होड़ लेती हुई
जहाँ-जहाँ थी, क़सम प्यार की खाई तुमने