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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=पँखुरियाँ हर सुबह एक ताज़ा गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
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{{KKCatGhazal}}[[category: ग़ज़ल]]
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नज़र आइने लगा न होँठों से मिलाता प्याला तो होगा!एक बार कभी नज़र से हमने मगर पी ही ली उधार कभी वह भी घूँघट उठाता तो होगा!
नहीं मुड़के देखे इधर जानेवाला नसीब हो न सका चैन दो घड़ी के लिएमगर किसीने दिल में आँसू बहाता तो होगा!का कभी छू दिया था तार कभी
'गए जो तूफ़ान में नाव बढ़ती रही हैकोई डाँड़ इसकी चलाता फूल ही कुम्हला तो आके क्या होगा!'हवा ये कहना, मिले तुझको जो बहार कभी
कोई क्यों लगाता है फेरे यहाँ के हम उनके प्यार को समझें तो किस तरह समझेंकभी यह ख़याल उसको आता तो होगा!नज़र में, कभी दिल में, दिल के पार कभी
गुलाब! अपनी रंगीनियाँ पाके तुझमें हमें तो चैन से दुनिया ने बैठने न दियाहुआ गुलाब का काँटों में ही सिँगार कभी दिल कोई झूम जाता तो होगा!!
<poem>
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