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Kavita Kosh से
हुआ चाँदनी में अमावस का रंग
हवा तेज़, तूफ़ान आने का ढंग
छिपा बादलों की गुफाओं में ताज़ताज
उलट-सी रही जैसे जमना भी आज
सभी आफतें आफ़तें जान पर एक साथ
ठहर ही न पाते हैं डाँड़ों पे हाथ'
तभी जैसे बिजली की तलवार से
कोई जलपरी स्याह लहरों पे लोट
हुई जैसे दमभर में आँखों की ओट
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