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जीवनधन के बिना कटे क्योंकर पावस की रजनी!
तप करने निकले मनमोहन, वन के भाग्य जगे री
सूनी सेज पड़ी , ऐसे नंदन में आग लगे री
सजनी तुझको रामदुहाई, उनसे कह दे जाकर
धूनी बनी विरहिनी जल-जल, से लें घर ही आकर