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Kavita Kosh से
मिले पिता, माता, गुरु वैसे
बीते जो दिन सपने जैसे
कहाँ ढूँढने ढूँढ़ने जाऊँ
वह सम्मान मिला, यश छाया
सोच-सोच पछताऊँ
चारों और ओर लगा हो मेला
रहूँ भीड़ में किन्तु अकेला
जिनका विरह न जाये झेला