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Kavita Kosh से
<poem>
'मुझे अँधेरे से प्रकाश में आने दो,
खुली हवा के झोंके खाने दो,
मुझे चाहिये फूल की-सी कोमल काया.'
डाल पर खिला फूल बुद्-बुदायाबुदबुदाया--
'अस्तित्व पीड़ा है, दंशन है,
इसकी आकांक्षा पागलपन है,