भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जो कुछ पाया मैंने तुमसे, जग को दिया सजाकर
जिसका जी चाहे, ले जाये अब यह ठोक बजा करठोक बजाकर
खोली मैंने गाँठ हृदय की, लाज नहीं खोली थी
भू को किया सुवासित जलकर, जलन नहीं घोली थी
अनजाने ही छेड़ दिया था मैंने तार किसी काकिसीकामेरे गीतों में झंकृत है अब भी प्यार किसी काकिसीका
धधक रही चेतना किसीकी पल भर को हो ली थी