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Kavita Kosh से
सकुचता, सिहरता, सहमता, लजाता
उतर चाँद ज्यों झील में झिलमिलाता
नज़र आ रहा है सवेरे-सवेरे
नज़र अब भी सपनों में खोयी हुई है
हँसी ज्यों शहद में डुबोई हुई है
कोई तान होठों होँठों पे सोयी हुई है
जिसे गा रहा है सवेरे-सवेरे
कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे
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