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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
नज़र भले ही हमें देखके शरमा ही गयी
झलक तो प्यार की पलकों से छनके आ ही गयी
 
क़सूर कुछ तेरे हाथों का भी तो है, फ़नकार!
करें भी क्या जो ये तस्वीर दिल को भा ही गयी!
 
चले जो हम तो चली साथ-साथ किस्मत भी
हरेक मुक़ाम पे पहले ये बेवफ़ा ही गयी
 
सँभाली होश की पतवार बहुत हमने, मगर
पहुँच के नाव किनारे पे डगमगा ही गयी
 
गली में उनकी हज़ारों महक उठे हैं गुलाब
हमारे दिल की तबाही भी रंग ला ही गयी
<poem>
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