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सात हाइकु / जगदीश व्योम
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13:32, 10 अगस्त 2011
मरने न दो
परंपराओं को
परंपराएँ
कभी
बचोगे तभी।
छीन लेता है
घनी
धनी
मेघों से जल
दानी पहाड़
</poem>
वीरबाला
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