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Kavita Kosh से
उस नज़र पे छाये हुए और सौ गुलाब
क्या करें जो दिल को तुम्हीं एक भा गएगये
यों तो थे सजाये हुए और सौ गुलाब
खिल रहे लजाये हुए और सौ गुलाब
हम नहीं रहे तो क्या बहार मिट गयी !
बाग़ था छिपाए हुए और सौ गुलाब
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