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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> फिर महकी अमराई को…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई !
एक प्रश्न बार-बार
पूछता है मन उघार
तुम इतना क्यों फूले?
नई-नई गंधों से
सांस-सांस हुलसाई!
अंतस में प्यार लिए
मधुरस के आस लिए
भँवरा बन क्यों झूले?
न-नए रागों से
कली-कली मुस्काई!
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई !
एक प्रश्न बार-बार
पूछता है मन उघार
तुम इतना क्यों फूले?
नई-नई गंधों से
सांस-सांस हुलसाई!
अंतस में प्यार लिए
मधुरस के आस लिए
भँवरा बन क्यों झूले?
न-नए रागों से
कली-कली मुस्काई!
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई!
</poem>