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आस्था / मुकेश पोपली

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{{KKCatKavita‎}}<poem>अचानक ही क्यों
जाग जाती हो तुम
तुम क्यों नहीं
बनाती अपनी कोई
पंचवर्षीय योजना
तुम क्यों नहीं
सजाती अपनी कोई
बड़ी सी दुकान

तुम क्यों नहीं
बड़बड़ाती जब कोई
तुम्हें एकदम से
याद करता है
तुम क्यों नहीं
भटकाती जब कोई
अटकाता है रोड़े
तुम्हारे रास्ते में

मुझे बरगलाओ मत
यह सब तुम
करती हो मगर
देख नहीं पाता
तुम्हारे प्रेम में डूबा
कोई पागल
क्योंकि
तुम ही तो
हो एक विश्वास
सच्चे हृदय का
सच्ची भावना का
सच्चे लक्ष्य का
सच्ची प्रेम-गाथा का।
</poem>
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