भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मानी बादल,
तू भी उपर ही से सैन चलाता है!
तेरी बिजली राह दिखाती नहिं नहीं नई रे,
यह परम्परा तो तू भी न ढहाता है!