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कबीर दोहावली / पृष्ठ २

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तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे न सूर । <BR/>
तब लग जीव जग कर्मवश, ज्यों लग ज्ञान न पूर ॥ 101 ॥ <BR/><BR/>
जो जाने जीव आपना, करहीं जीव का सार । <BR/>
जीवा ऐसा पाहौना, मिले न दीजी बार ॥ 200 ॥ <BR/><BR/>
 
 
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